सुखमनि साहिब में लिखा है :
।। सगल सृसटि को राजा दुखीआ हरि का नाम
जपत होई सुखीया ।।
यहाँ तक कि सम्पूर्ण विश्व का राजा भी दुखी है । सुखी केवल वही है जो मालिक के नाम के सिमरन में मग्न हो , इससे हमें यह पता चलता है कि आनन्द का स्रोत सिर्फ ' नाम ' ही है । श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते थे कि जो लोग सांसारिक पदार्थों में सुख खोजते हैं , वे सबसे अधिक दुखी हैं । पद प्रतिष्ठा की भूख कभीकम नहीं होती । सुख और संतोश उन्ही के भाग्य में है जो प्रारब्ध से संतुष्ट है और गुरु द्वारा दिए गए पवित्र नाम के अभ्यास में मग्न है ।
नाम की सच्ची दात मुबारक
🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊 बुल्ले शाह कहते हैं...
उस दे नाल यारी कदी ना रखियो,
जिस नू अपने ते गुरूर होवे...
माँ बाप नू बुरा ना अखियो,
चाहे लाख उन्हां दा क़ुसूर होवे...
राह चलदे नू दिल न दैयो,
चाहे लख चेहरे ते नूर होवे
ओ बुल्लेया दोस्ती सिर्फ उथे करियो,
जिथे दोस्ती निभावन दा दस्तूर होवे..!!
👌👌👍👍👍👏👏👏👏
बाबा फरीद जी......
वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली,
मिट्टी उत्ते मिट्टी दुल्ली...
मिट्टी हँससे मिट्टी रोवे,
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे...
ना कर बन्दया मेरी मेरी,
ना एह तेरी ना एह मेरी...
चार दिनां दा मेला दुनिया,
फेर मिट्टी दी बण जाना ढेरी...!!
No comments:
Post a Comment