Subhashitani / सुभाषितानि


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महाजनस्य संसर्गः, 
कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं तोयम्, 
धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥
महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है।For whom is the company of great people not beneficial? Even a water droplet when on lotus petal, shines like a pearl.
पातितोऽपि कराघातै-
रुत्पतत्येव कन्दुकः।
प्रायेण साधुवृत्तानाम-
स्थायिन्यो विपत्तयः ॥
हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है।A ball, though forced to fall on ground with a blow from hand, rebounds upwards. Generally, the misfortunes of the virtuous are momentary.
न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्, 
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि
 
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, 
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्
जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है। It cannot be stolen by thieves, nor can it be taken away by the kings. It cannot be divided among brothers, it does not have a weight. If spent regularly, it always keeps growing. The wealth of knowledge is the most superior wealth of all!
सा विद्या या विमुक्तयेज्ञान वह है जो मुक्त कर दे।That is Knowledge, which liberates!!
उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति, 
कार्याणि न मनोरथै

न हि सुप्तस्य सिंस्य, 
प्रविशन्ति मृगाः
प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।Things are achieved by doing and not by desiring alone as deers by themselves don't go into a lion's mouth.
गुरु शुश्रूषया विद्या 
पुष्कलेन् धनेन वा।
अथ वा विद्यया विद्या 
चतुर्थो न उपलभ्यते॥
विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है।इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है॥ Knowledge is acquired by serving the master or by giving enough money or in exchange of knowledge. A fourth way is not seen. 
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् 
न ब्रूयात् सत्यमप्रियं।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् 
एष धर्मः सनातनः॥  
सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥Speak truth, speak nice things sweetly. Don't  speak bitter truth. Don't speak incorrect things even nicely. This is eternal practice.
विद्वत्वं च नृपत्वं च 
न एव तुल्ये कदाच
न्
स्वदेशे पूज्यते राजा 
विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है॥Intelligence and kingdom can never be compared. A king is respected in his own land whereas a wise man is respected everywhere. 
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि 
गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥  There are five signs of fools - Pride, abusive language, anger, stubborn arguments and disrespect for other people's opinion.
अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति 
प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च 
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता॥ Eight qualities adorn a man -intellect, good character, self-control, study of scriptures, valor, less talking, charity as per capability and gratitude.
क्षमा बलमशक्तानाम् 
शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके 
क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥
क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है॥Forgiveness is the power of powerless. Forgiveness adorns the powerful. Forgiveness has controlled this entire world. What cannot be achieved by forgiveness!
न ही कश्चित् विजानाति 
किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि 
कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥    
कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ॥No one knows what is going to happen tomorrow. So doing all of tomorrow's task today is a signature of wise. 
आयुषः क्षण एकोऽपि 
सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन 
प्रमादः सुमहानहो ॥
आयु का एक क्षण भी सारे रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इसको व्यर्थ में नष्ट कर देना महान असावधानी है॥Even a single second in life cannot be obtained back by all precious jewels. Hence spending it wastefully is a great mistake. 
चिता चिंता समाप्रोक्ता 
बिंदुमात्रं विशेषता।
सजीवं दहते चिंता 
निर्जीवं दहते चिता॥
चिता और चिंता समान कही गयी हैं पर उसमें भी चिंता में एक बिंदु की विशेषता है; चिता तो मरे हुए को ही जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को॥"Chita" and "Chinta" are said to be same still there is a difference of a dot. Pyre(chita) burns the dead while Worry(chinta) burns the alive.  
क्षणशः कणशश्चैव 
विद्यामर्थं च साधयेत् । 
क्षणत्यागे कुतो विद्या 
कणत्यागे कुतो धनम्॥    
क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है॥ Knowledge should be gained through minute by minute efforts. Money should be earned utilizing each and every resource. If you waste time, how can you get knowledge. If you waste resources, how can you accumulate the wealth.
अपि स्वर्णमयी लंका 
न मे लक्ष्मण रोचते। 
जननी जन्मभूमिश्च 
स्वर्गादपि गरीयसी॥ 
हे लक्ष्मण! सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती है। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं॥  O Lakshman, even though Lanka is a golden land, it does not appeal to me. One's mother and motherland are greater than heaven itself.
नारिकेलसमाकारा 
दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।
अन्ये बदरिकाकारा 
बहिरेव मनोहराः॥
सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ॥The nobles are like coconuts, tough outside but soft inside. Others are like jujube fruit, beautiful only outside. 
नाभिषेको न संस्कारः 
सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य 
स्वयमेव मृगेन्द्रता॥
कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं काराजा बन जाता है ॥Nobody declares a lion as the king of forest by doing rituals. By sheer might of his own, a lion achieves the status of lord of animal kingdom.
गते शोको न कर्तव्यो 
भविष्यं नैव चिन्तयेत् । 
वर्तमानेन  कालेन 
वर्तयन्ति विचक्षणाः॥
बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ॥One should not mourn over the past and should not remain worried about the future. The wise operate in present.
यः पठति लिखति पश्यति 
परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनी
दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥
जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ॥  One who reads, writes, sees, inquires, lives in the company of learned, his intellect expands as the lotus petals expands due to the rays of sun. 
उदये सविता रक्तो 
रक्त:श्चास्तमये तथा

सम्पत्तौ च विपत्तौ च 
महतामेकरूपता
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥   The sun looks red while rising and setting. Great men too remain alike in both the good and bad times.
विदेशेषु धनं विद्या 
व्यसनेषु धनं मति:

परलोके धनं धर्म: 
शीलं सर्वत्र वै धनम्
विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है॥ Knowledge is wealth in a foreign land. Intelligence is wealth in tough times. Righteousness is wealth in other world. Verily, Good Character is wealth everywhere and at all the times!
दर्शने स्पर्शणे वापि 
श्रवणे भाषणेऽपि वा

यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स 
स्नेह इति कथ्यते
यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है॥If seeing or touching somebody; hearing or speaking with somebody, touches your heart, then it is called affection.
प्रदोषे दीपकश्चंद्र: 
प्रभाते दीपको रवि:

त्रैलोक्ये दीपको धर्म: 
सुपुत्र: कुलदीपक:
शाम को चन्द्रमा प्रकाशित करता है, दिन को सूर्य प्रकाशित करता है, तीनों लोकों को धर्म प्रकाशित करता है और सुपुत्र पूरे कुल को प्रकाशित करता है॥Moon illumines the evening. Sun illumines the morning. Dharma (Righteousness) illumines all the three worlds and a capable son illumines all ancestors. 
नास्ति विद्या समं चक्षु
नास्ति सत्य समं तप:

नास्ति राग समं दुखं 
नास्ति त्याग समं सुखं॥
विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है॥Knowledge is the greatest eye. Truth is the highest penance. Attachment is the biggest pain. Renunciation is the highest happiness.
उत्साहो बलवानार्य 
नास्त्युत्साहात्परं बलम्

सोत्साहस्य च लोकेषु 
न किंचिदपि दुर्लभम्
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है।उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है॥Enthusiasm is the power of noble men. Nothing is as powerful as enthusiasm. Nothing is difficult in this world for an enthusiastic person.
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं
दीर्घायुष्यं बलं 
सुखं
आरोग्यं परमं भाग्यं 
स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं॥
Exercise results in good health, long life, strengthand happiness. Good health is the greatest blessing.  Health is means of everything.
पुस्तकस्था तु या विद्या 
परहस्तगतं धनं

कार्यकाले समुत्पन्ने 
न सा विद्या न तद् धनं
पुस्तक में लिखी हुई विद्या, दूसरे के हाथ में गया हुआ धन, जरुरत पड़ने पर  काम नहीं आते हैं।The knowledge which is residing in the book and the money which is in possession of someone else are of no use as during the time of need they don't serve their purpose.
अतितॄष्णा न कर्तव्या 
तॄष्णां नैव परित्यजे
त्
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं 
स्वयं वित्तमुपार्जित
म् 
अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥Extra desires should be avoided but desires should not be given up totally. One should use self earned money gently.
क्रोधो वैवस्वतो राजा 
तॄष्णा वैतरणी नदी

विद्या कामदुघा धेनु: 
सन्तोषो नन्दनं वनम्
क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है॥Anger is like King of Death. Greed is like turbulent river of hell. Knowledge is all fulfilling cow and contentment is the heaven's paradise.
लोभमूलानि पापानि 
संकटानि तथैव च

लोभात्प्रवर्तते वैरं 
अतिलोभात्विनश्यति
लोभ पाप और सभी संकटों का मूल कारण है, लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है॥Greed is the root cause of all sins and troubles. Greed gives rise to enmity and excess greed leads to disaster.
धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो 
दशकं धर्मलक्षणम्
धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना॥    There are ten characteristics of 'Dharma' - patience, forgiveness, self-control, non- stealing, purity, control of senses, intelligence, knowledge, truth, non-anger.
अभिवादनशीलस्य 
नित्यं वॄद्धोपसेविन:

चत्वारि तस्य वर्धन्ते 
आयुर्विद्या यशो बलम्
विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है - आयु, विद्या, यश और बल ॥A person who is polite and serves experienced people regularly, gains four qualities - age, knowledge, fame and power. 
विद्या मित्रं प्रवासेषु 
भार्या मित्रं गॄहेषु च

व्याधितस्यौषधं मित्रं 
धर्मो
 मित्रं मॄतस्य च
प्रवास (घर से दूर निवास) में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोग में औषधि मित्र होती है और मृतक का मित्र धर्म होता है ॥Knowledge is friend in the journey, wife is the friend at home, drug is friend in illness and Dharma (righteousness) is the friend after death.
 असतो मा सद्गमय, 
तमसो मा ज्योतिर्गमय, 
मॄत्योर्मा अमॄतं गमय
हे प्रभु! असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर मेरी गति हो ।O Lord! Lead me from the untruth to truth,  darkness to light and death to immortality.
यथा हि एकेन चक्रेण 
न रथस्य गतिर्भवेत्

एवं पुरूषकारेण विना 
दैवं न सिध्यति
जिस प्रकार एक पहिये वाले रथ की गति संभव नहीं है, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं। Just like a chariot cannot run with only a single wheel, similarly luck alone cannot complete a task without efforts.