Saturday, May 21, 2016

कुंभ स्नान

कुंभ स्नान

उज्जैन सिंहस्थ 2016 के शाही स्नान में आने वाले श्रृद्धालु जरा सोचें ,तनिक चिंतन करें......
बैसाख पूर्णिमा का सिंहस्थ 2016 का अन्तिम शाही स्नान था। क्षिप्रा के घाटों पर भारी भीड़ लग रही थी।
शिव पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने इतनी भारी भीड़ का कारण पूछा - आशुतोष ने कहा - सिंहस्थ के अन्य पर्व स्नानों की भांति, बैसाख पूर्णिमा के इस अन्तिम शाही क्षिप्रा स्नान करने वाले भी सीधे स्वर्ग जाते हैं। उसी पुण्य लाभ के लिए लाखों स्नानार्थियों की यह भारी भीड़ जमा है और चहुं दिशायों से उज्जैन की ओर सतत् चलायमान है।

पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया... पर... नया संदेह उपज पड़ा, इतनी भीड़ के लायक स्वर्ग में स्थान कहाँ है ? फिर लाखों वर्षों से लाखों - लाख लोग इसी आधार पर स्वर्ग पहुँचते रहते.. तो उनके लिए स्थान भी तो कहाँ रहता ?

छोटे से स्वर्ग में यह कैसे बनेगा ? भगवती ने अपना नया सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा।

भगवान शिव बोले - शरीर को गीला करना एक बात है पर जरूरी तो मन की मलिनता धोने वाला स्नान ही है।पुण्य सलिला क्षिप्रा में तन को नहीं, मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं। वैसे जो लोग होंगे,बस... उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा।

आशुतोष के इस उत्तर से पार्वतीजी का सन्देह घटा नहीं, और बढ़ गया।

पार्वती बोलीं - यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया और किसने मन संजोया।

यह तो मनुष्य के कार्य से जाना जाता है- शिवजी के इस उत्तर से भी पार्वतीजी के प्रश्न का समाधान न होते देखकर प्रत्यक्ष उदाहरण से महादेव ने लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया।

मार्ग में शिव कुरूप कोढ़ी बनकर पड़े रहे। पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया। दोनों बैठे थे। स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती।

पार्वती जी रटा- रटाया हुआ विवरण सुनातीं रहतीं। यह कोढ़ी मेरा पति है। कुंभ स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं आदि... आदि....।

अधिकांश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती। वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते।

पार्वती लज्जा से गढ़ गईं। भला ऐसे भी लोग कुंभ स्नान को आते हैं क्या? निराशा देखते ही बनती थी।

संध्या हो चली। एक उदारचेता आए। विवरण सुना तो आँखों में आँसू भर लाएं। सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी को कंधे पर लादकर क्षिप्रा तट तक पहुँचाया। जो सत्तू साथ में था उसमें से उन दोनों को भी खिलाया।

साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा - आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तम्भ हैं। धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं।

प्रयोजन पूरा हुआ। शिव पार्वती उठे और कैलाश की ओर चले गए। रास्ते में कहा - पार्वती इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था, जिसने मन धोया और स्वर्ग का रास्ता बनाया। कुंभ स्नान का महात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है।

पार्वती तो समझ गई कि कुम्भ महात्म्य सही होते हुए भी... क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं ? काश ..... सभी इसे समझ पाते , आत्ममंथन कर पाते !!!

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